धान कैप में बारिश और चूहों की मार झेल रहा खरीफ का धान

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-आखिर क्यों मिलर्स ने मिलिंग के लिए परिवहन नहीं किया?
लांजी। क्षेत्र में अनेक जगहों पर राशन दुकान से पर्याप्त मात्रा में राशन नहीं मिलने की बात सामने आती है अनेक बार मौसम इसमें बाधक बन जाता है क्योंकि जहां खराब मौसम के कारण भारी मात्रा में अनाज के सड़ने की खबरे सामने आती है तो वहीं कभी-कभी शासन और मिलर्स के बीच सामंजस्य का ना बन पाना भी गरीबों के लिए मुसीबत का पहाड़ खड़ा कर देता है।

लांजी के सिर्फ पालडोंगरी धान कैप में लगभग 12.5 हजार मिट्रिक टन धान प्लास्टिक की कैप ढांककर रखा गया है, जिसमें चूहों और बारिश ने अपने करामात दिखाए है और यह आज भी बदस्तूर जारी है हालांकि इसके लिए तरह-तरह के प्रयास किए जाने की बात कही जा रही है लेकिन अब तक धान की मिलिंग ना होना भविष्य के लिए चिंता का सबब बन रहा है।

– धान की गुणवत्ता हो रही प्रभावित
एक पूरी प्रक्रिया के तहत सरकार द्वारा किसानों से समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी करती है और उसे मिलर्स द्वारा मिलिंग उपरांत पीडीएस तक पंहुचा दिया जाता है लेकिन इस बात मिलर्स द्वारा भंडारित स्थानों जैसे धान कैप या वेयरहाउस से धान मिलिंग के लिए नहीं उठाया गया है, जिसके कारण हालात बिगड़ सकते है क्योंकि अब तक आंधी-तूफान और बारिश ने धान की गुणवत्ता पर असर डाला है तो वहीं यह माना जाता है कि 15 जून से मानसून दस्तक देता है ऐसे में सरकार द्वारा खरीदे गए इस खरीफ फसल के धान की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ेगा और यह गरीबों के भरण-पोषण को प्रभावित करेगा।

– लेटलतिफी पर चूहे भारी
यहां विशेष उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष खरीफ का धान किसानों से दिसंबर या जनवरी तक खरीद लिया जाता है और उसके बाद किसानों के भुगतान से लेकर मिलर्स को उक्त धान मिलिंग हेतु देने की प्रक्रिया भी मार्च तक संपन्न हो जाती है लेकिन इस बार धान कैप और निजी गोदामों में रखे गए धान ने चिंता में डाल दिया है। जहां खुले में प्लास्टिक के कैप से ढंककर रखे गए धान के बोरों को कुतरकर चूहों ने अपने दाने का इंतजाम कर लिया है तो वहीं फटे हुए कैप से बारिश का पानी धान को सड़ाने के लिए काफी है, ऐसे में मिलर्स और प्रशासन के बीच के नियम-कायदे चिंता में डालने वाले है।

– गरीबों को समय पर मिले सही राशन
तह की पड़ताल पर जाने के प्रयास में यह बात सामने आयी कि शासन चाहता है कि चावल की क्वालिटी अच्छी हो जिसमें टूट न्यूनतम हो वाजिब भी है कि जब किसान से धान लेते समय नमी जैसे कुछ अन्य पैमानों पर परखा जाता है तो ऐसे में राशन के अच्छे होने की भी उम्मीद तो की ही जा सकती है। वैसे भी खराब राशन के वितरण की भी खबरे भी आती है, जिसे देखते हुए यह सख्ती तो की ही जा सकती है, तो वहीं खराब चावल को गरीबी रेखा के लोगों द्वारा बेचे जाने की चर्चा भी आम है तो ऐसे में शासन द्वारा बेहतर गुणवत्ता का चावल दिया जाना सराहनीय पहल है लेकिन लाॅकडाउन के दौरान भी क्षेत्र में राशन की कमी बनी रहने की बाते प्रकाश में आयी, ऐसे हालात ना बने इसके लिए जरूरी है कि समय पर मिलर्स द्वारा मिलिंग का कार्य कर लिया जाए।

– इनका कहना है
– मिलर्स द्वारा अब तक धान का उठाव नहीं किया जाना चिंताजनक है, बारिश के कारण नमी से जहां धान के खराब होने की संभावना है तो ऐसे में अच्छे चावल की उम्मीद कैसे की जा सकती है, इसके लिए जल्द मिलर्स द्वारा धान का उठाव किए जाने की आवश्यकता है। शासन से मांग है कि विभागीय कार्यवाही जल्द पूरी कर मिलिंग के लिए धान को उठाव किया जाए ताकि समय रहते मिलिंग हो और अच्छी क्वालिटी का चावल प्राप्त हो सके अन्यथा निजी गोदामों के धान तो सुरक्षित रह सकते है लेकिन खुले में रखा धान खराब होने पर शासन की राशि का दुरूपयोग होगा।
(अजय अवसरे, अध्यक्ष ब्लाॅक कांग्रेस लांजी)

– पालडोंगरी धान कैप में धान मेरे प्रभार में है, खरीफ की फसल का 70-75 प्रतिशत धान का अब तक उठाव या मिलिंग हो जाती है। मिलर्स का अनुबंध होता है शायद जिसकी पुरानी पाॅलिसी परिवर्तित हो गई है जिसके बारे में उच्चाधिकारी बता पाएंगे, मिलर्स को कुछ चावल नाॅन और एफसीआई में जमा करना होता है तो उसकी भी स्थिति फिलहाल साफ नहीं हुई है। मानसून से धान खराब तो नहीं होगा क्योकि हमने अच्छे से कैप कवर से ढांका हुआ है और सल्फास आदि की टेबलेट आदि डाली है तो वह सुरक्षित है। इसके अलावा शेष धान निजी गोदाम में भी है जो कि एसडब्लूसी के अंडर में है।
(सौरभ उईके, पालडोंगरी धान कैप प्रभारी)

– चूहो से धान को बचाने के लिए सल्फास टेबलेट डालते है, जिसका प्रभाव 15-20 दिन रहता है। बारिश से बचाने के लिए कवर है और कवर फटने पर उसे बदल दिया जाता है। बारिश का पानी जाने पर संभावना तो होती है धान खराब होने की लेकिन फटने पर हम कवर बदल देते है। मै यहां विगत 5-6 साल से काम कर रहा हूं, पहले जनवरी-फरवरी में धान का उठाव प्रारंभ हो जाता था लेकिन इस साल देरी हो गई है।
(चैनसिंह सोेलंकी, चैकीदार पालडोंगरी धान कैप)