बालाघाट के सबसे घने वनों की हद में जाकर विकास ने कदम पसारे

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विकास से अछूते रहें घने वनक्षेत्र में विकास को छूने के प्रयास प्रारम्भ
नक्सल डर और घने जंगल में निर्माण की चुनौतियों के बीच मिली सफलता
7 वनग्रामों में 5 हाईलेवल ब्रिज निर्माण से आने लगी गत
बालाघाट – सबसे घने वनों की हद में जाकर अब विकास के कार्य प्रारम्भ हो चुके है। जिले में लौगुर का वो जंगल जो आम नागरिकों के लिए तो अछूता रहा ही, साथ ही यहॉं के निवासियों के लिए भी विकास दूर रहा है। वहां अब ठोस विकास की शुरुआत हो चुकी है। इस घने जंगल की आड में नक्संलियों ने कभी यहॉं आतंक फैलाया था अब इस घने जंगल में 11 करोड़ 70 लाख के 5 हाईलेवल ब्रिज का निर्माण कार्य का शासन को बडी सफलता मिली है। मप्र ग्रामीण सडक विकास प्राधिकरण द्वारा 5 हाईलेवल ब्रिज का कार्य शुरू किया गया था जिनमें से 4 पूर्ण हो चुके है। सबसे बड़ी बात है, इसी घने जंगल में 17.42 किमी. लंबी 1255.92 लाख रुपये की सड़क निर्माण की विभाग द्वारा पूरी तैयारी कर ली गई है। इस घने जंगल में बसें 7 वनग्रामों के लिए उस्काल नदी जल का एक बड़ा स्रोत तो है, लेकिन बारिश के दौरान परिवहन में समस्या भी बन जाया करती है। अब से बारिश में भी यहां के जनजातीय नागरिक आसानी से सफर कर पायेगी। इस घने जंगल में खारा, पोलबत्तूर, कोकमा, तल्लाबोडी, लौगुर, वरूरगोटा और सल्फारीठ वनग्राम आबाद है। जो अब सीधे सड़क से जुड़कर विकास के रास्ते पर आ सकेंगे।
नक्सल डर और वन बचाने की चुनौती के बीच मिली सफलता
मप्र ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण प्रबंधक श्रीमती माया परते ने बताया कि यहां पुल पुलिया और ब्रिज के निर्माण कार्य के लिये कोई कम्पपनी नक्सबल डर के कारण तैयार नहीं हो पा रहीं थी। विकास द्वारा कई बार टैंडर लगाने के बाद प्रशासनिक सहयोग देने का प्रस्ताकव दिया। इसके अलावा वनों को बचाते हुए निर्माण करने की अलग चुनौती रहीं है। यहां चार ब्रिज पुर्ण हो गए है, एक 17 किलोमीटर की एक सड़क जो खुरसुड़ होकर पोलबत्तूर से खारा को जोड़ेगी, जिससे चिखलाझोड़ी मार्ग से जोड़ेगी। कलेक्टर श्री मृणाल मीना ने कहा कि इस घन जंगल में बहुत ही आवश्यंक आधारभूत सरंचना तैयार हुई है। ब्रिज तैयार होने इसी बारिश में 7 वन ग्रामों को सुगमता होगी।
ऐसे समझें इस विकास से अछूते क्षेत्र को
बालाघाट में लौगुर का 66.71 किमी.क्षेत्र व 412 हेक्टेयर में बसा घनघोर जंगल अपने आप मे कई खूबियों वाला है। जिसकी उत्तर में सीमा चिखलाझोडी रोड़ व दक्षिण में सामनापुर, पूर्व में बैहर-बालाघाट रोड़ से मिलता है। इस जंगल का एक बड़ा क्षेत्र मयूरबिन के लिए खास पहचान रहता है। यह जंगल अब भी आम नागरिकों की पहुँच के कारण अनछुआ है। इस जंगल मे प्रवेश तीन स्थानों से हो सकता है। एक बैहर बालाघाट रोड़ से, चिखलाझोडी रोड से और एक सामनापुर रोड़ पर आमगांव की ओर से मोटर सायकिल से सम्भव है। अभी एमपीआरआरडीसी द्वारा खुरसुड़ की ओर से खारा तक उस्काल नदी और अन्य नालों ब्रिज तैयार हुए है।
फुलकन बाई, श्रीचंद, प्रह्लाद जैसे ग्रामीणों में विकास की उम्मीद जागी
17 जून को खुरसुड़ निवासी श्री चंद ने अपनी बैलगाड़ी पहली बार पूल से निकालते हुए कहा कि मैं हमारी बैलगाड़ी बिना मुसीबत से निकल पाएगी। कई बार नदी के पानी मे बैल उतरते नही थे और पहिये पत्थरों व रेत में फंस जाते थे। फुलकन बाई का कहना है कि अब गांव की बेटियों आसानी से ब्याही जा सकेगी। कई रिश्ते सुव्यवस्थित पहुँच मार्ग नही होने से नही हो पाते थे। अब यह धारणा बदलने लगी है। वन समिति अध्यक्ष श्री प्रह्लाद को भी वन ग्राम में विकास की नई उम्मीद दिखाई देने लगी है।
इसलिए खास है लौगुर घाटी का जंगल
बालाघाट में सबसे घने जंगल की पहचान रखने वाला इस क्षेत्र में कई खूबियां समाई है। लौगुर परिक्षेत्र में संयुक्त वन प्रबंधन के तहत 7 वन सुरक्षा समितियां कार्य कर रही है।जिनका दायरा 24821.66 हेक्टेयर वनक्षेत्र में फैला है। यहां मांसाहारी वन्यप्राणियो में बाघ, तेंदुआ, लकड़बघ्घा, सियार, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, पेंगोलिन के अलावा शाकाहारी प्राणियों में चीतल,सांभर, चिंकारा, गौर नीलगाय, भेड़की, जंगली सुअर, सेही, चौसिंगा और द्विभोजी में भालू भी पाए जाते है। इस घने जंगल में पक्षियों की संख्या भी खूब रोमांचित करती है, इनमें मोर, दूधराज,तीतर, जंगली मुर्गे,तोता, कठफोड़वा,चील,नीलकंठ, सारस, बुलबुल और सरिसर्पो में गोहटा, गिरगिट, धामन, करैत, नाग, अजगर और कछुए भी समाएं है। वनोपज या वनोषधि में गोंद, हर्रा, बहेड़ा, महुआ लाख, गुल्ली, सतावर, सफेद मूसली, काली मूसली, बेचान्दी, आंवला, भिलवा, चिंरोटा, चिंद, शहद और आम बेहद रसीले उपलब्ध है।