कोविड-19 के बाद बेसिक शिक्षा में चुनौतियां-राजू यादव, शिक्षक

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कोविड-19 ने जिस क्षेत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, उनमें बालशिक्षा सर्वोपरि है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो कोविड और फिर लॉकडाउन से शिक्षा-व्यवस्था तकरीबन ठप सी हो गई। जो कुछ उपाय किए भी गए, उसका भी लाभ ग्रामीण और गरीब परिवारों के बच्चे तकनीकी दक्षता की कमी के कारण नहीं उठा पाए।

शिक्षा एक ऐसा व्यापक शब्द है जो व्यक्ति को नवीन ज्ञान एवं नवीन अनुभव प्रदान करता है। शिक्षा मनुष्य की आंतरिक शक्तियों को विकसित कर उसके अन्दर के कौशलों को बाहर निकालने का कार्य करती है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार – व्यक्ति के आंतरिक पहलू की अभिव्यक्ति शिक्षा है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में संविधान ने बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिया है जिसमें 6 से 14 वर्ष की आयु के बालक एवं बालिकाओं को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान रखा गया है। इस कानून के लागू होने के बाद से शिक्षा में लगातार सुधार किए जा रहे हैं जिसमें केन्द्र एवं राज्यों द्वारा बहुत सारी योजनाएं और कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं।

कोविड-19 ने जिस क्षेत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, उनमें बालशिक्षा सर्वोपरि है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो कोविड और फिर लॉकडाउन से शिक्षा-व्यवस्था तकरीबन ठप सी हो गई। जो कुछ उपाय किए भी गए, उसका भी लाभ ग्रामीण और गरीब परिवारों के बच्चे तकनीकी दक्षता की कमी के कारण नहीं उठा पाए।

 

भारत जैसे कृषि प्रधान देशमें अधिकांश जनता ग्रामीण परिवेश में रहती है जहां पर आज भी आर्थिक, व्यावसायिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ापन है।

उत्तर प्रदेश जैसे सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य में बेसिक शिक्षा में अभूतपूर्व परिवर्तन की शुरुआत हुई और उसका परिणाम धरातल में दिखने लगा था किन्तु कोविड-19 महामारी ने एक बार फिर से बेसिक शिक्षा के ग्रामीण बच्चों और शहरी बच्चों के बीच में खाई बना दी है।

कोरोना जैसी महामारी ने संपूर्ण विश्व के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक ढांचे को अस्त-व्यस्त कर दिया जिसमें शिक्षा का क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा।

कोविड-19 जैसी महामारी के कारण मार्च 2020 में जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तब बच्चों, अभिभावको एवं शिक्षको को इस बात का बिलकुल भी एहसास नहीं था कि आने वाला समय हमारे सीखने एवं सिखाने के समय को प्रभावित कर देगा। इस महामारी के कारण विद्यालयों के दरवाजे बंद हो गए और प्रकृति की गोद में खेलने वाले बच्चे एक कमरे में बंद हो गए।

कोविड-19 जैसी महामारी का बच्चों की शिक्षा में प्रभाव न पड़े, इसके लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार ने कई प्रयास किए जिसमें ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहन मिला।

ऑनलाइन शिक्षा में बच्चों को स्मार्टफोन, रेडियो, टीवी, कम्पयूटर, लैपटॉप से जोड़कर शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया। बच्चों की शैक्षिक गुणवत्ता बनाये रखने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा ऑन लाइन पोर्टल, वॉट्सएप, यूटयूब, ई-पाठशाला, फेसबुक लाइव, जूम एवं गूगलमीट जैसे प्रोग्राम चलाए गए।

इस व्यवस्था का कुछ लाभ शहरी क्षेत्र के बच्चों को तो मिला किन्तु ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों पर इसका ज्यादा असर नही दिखा। इसका सबसे बडा कारण अचानक होने वाला यह  अप्रत्याशित  तकनीकी बदलाव है जिसके लिए ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों, अभिभावको के लिए एक नया अनुभव था।

इस बात को नकारा नहीं किया जा सकता कि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के पास न तो स्मार्ट फोन थे और न ही किसी प्रकार की इण्टरनेट की सुविधा। जिन बच्चों के अभिभावकों के पास थे, उनको उपयोग करने की जानकारी नहीं थी।

कोरोना महामारी के दौरान स्कूलों के बंद होने के कारण छात्रों के सीखने की क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ा, इसके आकलन के लिए यूनीसेफ द्वारा देश के कुछ चुनिन्दा राज्यों से आंकड़े जुटाए और उनका मूल्यांकन एवं अध्ययन के बाद निष्कर्ष निकाला कि “छात्र स्कूल बंद होने पर स्व-अध्ययन पर समय तो अधिक व्यतीत करते हैं पर सीख कम रहे हैं, जबकि स्कूल में कम समय बिताते हैं और, अधिक सीखते हैं।”

कोविड-19 महामारी एक अस्थायी समस्या है लेकिन यह अभी पूरी तरह जड़ से समाप्त नही हुई है। भविष्य में इससे भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बेसिक शिक्षा में कोविड-19 के प्रभाव के कारण बच्चों के लर्निंग आउट-कम को बढ़ाने के लिए ई-पाठशाला, प्रेरणा लक्ष्य, निपुण भारत एवं बालवाटिका जैसे कार्यक्रम तैयार किए गये हैं।

ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद जब विद्यालय खुल रहे हैं तो सबसे बड़ी चुनौती बच्चों के लिखने एवं पढ़ने के कौशलों को विकसित करने की है।

कोविड-19 जैसी महामारी के कारण बच्चों के सीखने की क्षमता में जो कमी आई है, उसे शिक्षक एवं अभिभावकों की सक्रियता से और योजनाओं के सही संचालन से ही दूर किया जा सकेगा।

हमें लगातार ऐसे संसाधन तलाशने होगें जो ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती एवं सरल तकनीकी प्रणाली से शिक्षा सुलभ हो सके और भविष्य में कोरोना जैसी महामारियों की चुनौतियों का सामना किया जा सके।

(लेखक राजू यादव, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद के उफरौली में प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं। संपर्क-6307534829)