इंसानियत हमें धर्म, वंश का सम्मान करना सिखाती है- अंतर्मना आचार्य 108 प्रसन्न सागरजी महाराज

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गोंदिया। 1100 किमी की पदयात्रा कर गोंदिया की पावन धरा में पधारे जैनाचार्य अंतर्मना आचार्य 108 श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने आज गोंदिया के एनएमडी कॉलेज के आडोटोरियम हॉल में गोंदिया शिक्षण संस्था द्वारा आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में जोरदार कथन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया, वही उनके मीठी शब्दों की वाणी से हजारों के दिल प्रफुल्लित हो गए।

अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजीमहाराज के इस प्रवचन कार्यक्रम में दिप प्रज्वलन गोंदिया शिक्षण संस्था एवं मनोहरभाई पटेल अकादमी की अध्यक्षा श्रीमती वर्षाताई पटेल, पूर्व विधायक राजेन्द्र जैन, विधायक विनोद अग्रवाल, संजय जैन, विधायक मनोहर चन्द्रिकापुरे, निखिल जैन आदि के किया।

अंतर्मना तपाचार्य, आचार्य 108 श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने गोंदिया की धरती को पावन धरा बताया। आचार्य श्री ने कहा, इस धरा में अनेक संतो का आगमन हुआ है। आचार्य पुष्पदन्त महाराज इसी नगरी में पैदा भी हुए है।

उन्होंने अपने प्रवचन में कहा, हमें इंसानियत का धर्म अपनाना चाहिए। भले ही हम किसी भी धर्म, वंश में पैदा हुए हो, पर अपने या किसी भी धर्म की आलोचना नही करना चाहिए। धर्म को कलंकित न होने दे और किसी भी संत का अपमान न करें।

कहानी के माध्यम से पढ़ाया इंसानियत का पाठ..

आचार्य श्री ने एक शेर और बंदर की कहानी के माध्यम से ये संदेश दिया कि दुनिया में मानवजाति ही एक ऐसी जाती है जो सबसे ऊपर हर स्तर पर पहुँच रखती है। परंतु मानवजाति ने सभ्यता, संस्कृति और इंसानियत को भूल गया है। इंसान ने अपनी इंसानियत खो दिया है, पर जानवरों में दयालुता, ईमान कायम है।

प्रवचन में कहानी के अंश में आचार्य श्री ने बताया कि एक शेर एक इंसान के पीछे पड़ जाता है। शेर उसे खाकर अपनी भूख मिटाना चाहता था, पर पेड़ पर लटके एक बंदर ने जब ये दृश्य देखा तो, उसके मन में दयालुता आयी। उसने सोचा कि अगर ये शेर का निवाला बन गया तो इसके परिवार का क्या होगा। बंदर उस इंसान की जान बचाने अपनी पूंछ को नीचे लटका दिया और इंसान उस पूंछ के सहारे पेड़ पर चढ़ गया। जब बंदर ने इंसान की मदद कर शेर का निवाला छीन लिया तो शेर को गुस्सा आया और उसने ठान लिया कि जबतक इंसान नीचे नहीं आएगा वो उस पेड़ के नीचे ही बैठा रहेगा। जब बंदर पेड़ पर ही सो गया तो, शेर ने इंसान से कहा, बंदर तो सो गया। अगर तुम इस बंदर को धक्का देकर नीचे गिरा दोंगे तो मैं इसे खाकर अपनी भूख मिटाकर चला जाऊंगा। आदमी कितना स्वार्थी होता है। जिस आदमी की जान की परवाह कर जिस बंदर ने दयालुता दिखाकर उसकी जान बचाई उस इंसान ने उस बचाने वाले बंदर को धक्का दे मारा। पर बंदर ने नीचे गिरने की बजाए दूसरी डाल को पकड़ लिया। तब शेर ने बंदर से कहा देखा, जिसे तुमने बचाया वही इंसान तुम्हारी जान को खतरे में डाल रहा था।

आचार्य श्री द्वारा इस कहानी को दोहराने का तात्पर्य सिर्फ यही था कि, मानव ने भले ही लाख तररकी कर ली हो पर वो इंसानीयत भूल बैठा है। हमारे अंदर दयालुता, प्रेम खत्म हो गई है जो इस बंदर के अंदर देखने मिली।

धन संपत्ति होकर भी अन्न ग्रहण का सुख नहीं..

आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने आगे कहा, आजकल इंसान अन्न की इज्जत करना भूल गया है तभी भगवान ने उसके खाने का सुख छीन लिया है। अक्सर देखा जाता है कि लोगो की थाली में घी की रोटी, लज़ीज़ खाने की जगह सुखी रोटी, उबली हुई दाल, लौकी का जूस, मूंग की दाल का पानी देखा जाता है। हमारे पास अत्यधिक धन संपत्ति होकर भी हम ऐसा भोजन क्यों कर रहे है? इसका कारण है कि हमने अन्न का अपमान करना शुरू कर दिया है। हमें अन्न को थाली में छोड़ना नही चाहिए, उतना ही ले जितनी जरूरत है।

आचार्य श्री ने कहा, इंसान कितना भी अमीर क्यों न हो, उसके अंदर फकीरी का आभास होना चाहिये। वही फकीर के अंदर अमीरी का एहसास होना चाहिये, यही हमारी इंसानियत है, हमारा धर्म है।

आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने आगे प्रवचन में कहा, गोंदिया के सभागार में गोंदिया शिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में जितने भी श्रोता है, उनसे मेरा निवेदन है कि वे मोबाइल को एक हद तक उपयोग करें। खाते समय मोबाइल को दूर रखें, शौच के दौरान और सोते समय दूर रखें। मोबाइल ने हमसे सबकुछ दूर कर दिया है। चैन, सुख छीन लिया है। इसका उतना ही इस्तेमाल करे जितनी जरूरत हो। आचार्य श्री ने कहा, पहले घरों में गौवंश को पाला जाता था, एक संपूर्ण परिवार एकसाथ रहता था, मिलकर भोजन करता था, पर विज्ञान ने सबकुछ अलग कर दिया। किसी के पास कोई समय नही है। गौवंश की जगह कुत्ते पाले जा रहे है। जिससे वास्तुदोष निर्माण हो रहा है।

अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज को जैन धर्म में विशेष कार्यों के लिए ब्रिटेन की संसद में भारत गौरव के सम्मान से सम्मानित करने के साथ-साथ वियतनाम विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। मानव मूल्यों के रक्षार्थ परस्पर मैत्री, वात्सल्य एवं शांति का उपदेश देने पर इंडिया बुक रिकॉर्ड, एशिया बुक रिकॉर्ड एवं गिनीज बुक रिकॉर्ड से भी गुरुदेव को सम्मानित किया गया है, गुरुदेव को भारत के साथ साथ विश्व भर में अब तक 250 से अधिक राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

आचार्य श्री प्रसन्न सागर महाराज द्वारा जैन धर्म के सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर में 21 जुलाई 2021 को जैन धर्म के सर्वोच्च तप सिंहनिषकिडित आरंभ करते हुए 23 जनवरी 2023 तक 557 दिनों तक लगातार मौन व्रत धारण करने के साथ-साथ 496 दिन उपवास रखने के साथ-साथ 61 दिन (पारणा) ग्रँथ पढा एवं कलयुग मे कठिन व्रत के माध्यम से जैन धर्म का नाम पूरे विश्व में ऊंचा किया।

आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज ने कहा, हमें अपने जीवन को जीने की कला नहीं आती। जीवन में जो जितना फ्री है वह उतना ही बिजी है और जीवन में जो बिजी है वह फ्री नहीं है, जीवन में हम राग द्वेष एवं मोह के जकड़ में समाते जा रहे हैं हमारे लिए अपने पास समय नहीं है जीवन को जीना है तो मोह माया को छोड़कर वीतराग की ओर बढ़ना होगा, हर व्यक्ति जीवन में किस्मत का धनी होता है बस उसे जीवन में किस्मत को आजमाने का तरीका आना चाहिए। यदि तुम्हें कोई एक चीज बदलना है तो सिर्फ अपने आप को बदल लो तुम्हारे बदले बिना संसार नहीं बदलेगा।

गुरुदेव ने प्रतिस्पर्धा से प्रगति की ओर, तनाव से प्रेम की ओर, मानवता से राष्ट्रीयता की ओर, मुस्कान से परमात्मा की ओर एवं चरित्र से संवेदनाओं की ओर जाने का संदेश दिया। गुरुदेव ने नष्ट होती नैतिकता, गुम होते आदर्श, विलुप्त होती मानव सेवा, लुप्त होती गुरु शिष्य की परंपरा पर चिंता व्यक्त की।

सौ. वर्षाबेन पटेल, राजेंद्र जैन, मनोहर चंद्रिकापुरे, विनोद अग्रवाल, देवेंद्रनाथ चौबे, निखिल जैन, संदीप जैन, संजय जैन बसंत जैन, देवेंद्र अजमेरा, दिलीप ठोल्या, अशोक ठोल्या, मनोहर वालदे, राजू एन जैन, नरेश जैन, अक्षय जैन, आकाश जैन, अनिल केसरीचंद जैन, राजेश कल्लू जैन, गोटू जैन, क्षितिज जैन, देवेश मिश्रा, सचिन मिश्रा, बाळकृष्ण पटले, कमलेश कोखरे, सुधीर जैन, रोहित जैन, आशिक जैन, संकल्प जैन, पूजा अखिलेश सेठ, अंजन नायडू, सुमित्रा महाजन, विकास ढोमणे, आलोक त्रिवेदी, आदि ने आचार्य श्री का आशीर्वाद लिया वही प्रवचन में हजारों धर्मप्रेमी समाज बंधू, गोंदिया शिक्षण संस्था के शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मचारी, विद्यार्थी की उपस्थिति रही।