आदिवासी समाज को विशेष धर्म का दर्जा देने की मांग

आदिवासी धर्म के लिये ७ नंबर का कोड देने की मांग ;;;;; अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की ओर से राष्ट्रपती को दिया गया ज्ञापन

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अमरावती, दि. 22 :देश के प्रत्येक राज्य में विभिन्न प्रमाण में मौजूद आदिवासी समूदाय के लिए अब तक केवल जाति आधारित जनगणना की जाती है। जबकि आदिवासी समाज का तर्क है कि देश के मूल निवासी व अपनी एक अलग परंपरा और पहचान तथा अलग आस्था रखने के दर्ज पर उन्हें ‘विशेष धर्म’ का दर्जा दिया जाए। साथ ही जनगणना प्रमाणपत्र में धर्म कॉलम में आदिवासी धर्म के लिए कोड नंबर ७ का कॉलम जोडने की मांग अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद नई दिल्ली (महाराष्ट्र शाखा) की ओर से राष्ट्रपती महामहिम रामनाथ कोविंद को सौंपे ज्ञापन में की गई है। यह ज्ञापन परिषद की ओर से संभागीय आयुक्त पीयूष सिंह और जिल्हाधिश शैलेश नवाल को परिषद के राज्य के महासचिव रामसाहेब चव्हाण, युवा कार्याध्यक्ष विलास वाघमारेसह अन्य पदाधिकारी के उपस्थिती मे सौपी गयी।

आदिवासी समूदाय से जुडे प्रतिष्ठीत नागरिकों की ओर से तर्क दिया गया है कि, भारत में हर १० वर्ष में सरकार द्वारा जनगणना कराई जाती है। १८७२ से लेकर अब तक लगातार यह परंपरा चली आ रही है। लेकिन वर्ष २०१९ में होनेवाली जनगणना मेें सरकार ने लींग, आयू, वैवाहिक स्थिति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जमाती, धर्म, साक्षरता, कार्य आदि विषयों को रेखांकित किया है। किंतु महामहिम से यह निवेदन है कि १८७१ से लेकर १९४१ तक भारत सरकार द्वारा की गई जनगणना में आदिवासी समूदाय के लिए एक अलग कॉलम रखा जाता था। जैसे १८७१ में अन्य धर्म, १८८१ में आदिवासी, १८९१ में वनजनजाति, १९०१ में एनिमिस्ट, १९११ एनिमिस्ट, १९२१ के बाद भी आदिवासी समूदाय को जनगणना में अलग धर्म के तौर पर ही गीना गया। १९५१ के बाद से आदिवासी समूदाय के लिए विशेष कॉलम हटाने की पहल की गई और आदिवासी समाज को संविधान के अनुच्छेद ३४२ (१) के तहत अनुसूचित जनजाती मे जोडा गया। समाज की जनगणना अनुसूचित जनजाति में कर उनके आंकडे सरकार प्रकाशित कर रही है। जबकि कई ऐसे आदिवासी समूदाय है जोकि अनुसूचित जनजाति में नहीं जुडे है। उनकी जनगणना भी धर्म के आधार पर की जाए, जिसके लिए आदिवासी धर्म के लिए ७ नंबर का कोड देने की मांग आदिवासी समुदायने की गई है।
अब तक केंद्र सरकार द्वारा की गई जनगणना में केवल ६ धर्मो का उल्लेख किया जाता है। जिनमें हिंदू, मुस्लिम, शिख, ईसाई, पारसी, बौध्द धर्म का समावेश है। जिसमें सिख, ईसाई, बौध्द, पारसी तथा जैन के धर्म माननेवालो की संख्या काफी कम है। इसके बावजूद उन्हें धर्म विशेष का दर्जा दिया गया है। जबकि आदिवासी समूदाय की संख्या काफी अधिक है। तब भी इस समूदाय को ७० वर्षो से धर्म का दर्जा पाने के लिए इंतजार करना पड रहा है। ज्ञापन में यह भी मांग की गई है कि देश के अलग-अलग राज्य व प्रांतो में अलग आस्था व परंपरा को माननेवाले आदिवासी समूदाय बसते है। जैेसे गोंडी, सरना, संथाली, भील, मीना, टोडा व अन्य इन सभी को आदिवासी धर्म का दर्जा दिया जाए। अन्यथा एक बार फिर से देशभर में आदिवासी समूदाय को अपनी मांगो को मनवाने हेतु सडक पर उतरना पडेगा।