विदर्भ में 1,449 किसान ने की आत्महत्या… बिगड़ती जा रही स्थिति

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महाराष्ट्र : मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पदभार ग्रहण करने के बाद ‘आत्महत्या-मुक्त महाराष्ट्र’ की घोषणा की थी लेकिन 6 महीने बीतने के बाद भी किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमा नहीं है। पिछले वर्ष विदर्भ में 1,449 किसानों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।

सबसे अधिक 1,110 आत्महत्या अमरावती संभाग में हुईं हैं। इनमें से 683 आत्महत्या अनुदान-पात्र मानी गईं, जबकि 480 आत्महत्या अपात्र करार दी गईं। वहीं 286 मामलों की जांच अब तक प्रलंबित है। सरकार द्वारा किसानों के लिए विविध तरह के पैकेज, योजनाओं की घोषणा की जा रही है। इसके बावजूद किसानों की हालत में सुधार नहीं हो सका है। कर्ज से परेशान होकर हर आये दिन कोई न कोई किसान आत्महत्या कर रहा है।

दरअसल अतिवृष्टि, दुष्काल, खाद-कीटनाशक के लिए लगने वाला खर्च, माल को योग्य भाव नहीं मिलने, बच्चों की पढ़ाई की वजह से किसान कर्जबाजारी होते जा रहे हैं और फिर इसी निराशा में आत्महत्या कर रहे हैं। इस बार बेमौसम बारिश और तेज बारिश के कारण किसानों की फसलें तबाह हो गईं। आत्महत्या करने वाले किसान परिवार को सरकार द्वारा 1 लाख रुपये की मदद की जाती है। यह निधि 14 वर्ष पहले तय की गई थी। इसमें अब तक कोई भी बढ़ोतरी नहीं हुई है।

25 जून 2015 को सरकार ने किसानों को आत्महत्या से दूर रखने के प्रयास के तहत आत्महत्याग्रस्त जिलों में जिला स्तरीय समिति गठित की थी। समिति के माध्यम से किसानों के लिए चेतना अभियान चलाया गया। साथ ही ‘वसंतराव नाईक शेती स्वावलंबन मिशन’ तैयार किया गया लेकिन इन योजनाओं का भी कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। सर्वाधिक आत्महत्या यवतमाल जिले में हुई हैं। नागपुर विभाग में सर्वाधिक आत्महत्या वर्धा व चंद्रपुर जिले में हुईं। 2001 से 2022 तक कुल 24,102 मामले सामने आए। 2008 में केंद्र ने 60,000  करोड़ की कर्ज माफी की थी लेकिन इसी दौरान आत्महत्या के आंकड़े बढ़े।