सामाजिक न्याय की विरासत को बचाओ यारो
एक इंसान की जिंदगी के कई पहलू हो सकते हैं– इसमें आम पहलू तो सबको पता होता है लेकिन कुछ अनछुए पहलू ऐसे होते हैं जो कभी आम नहीं हुए होते। एक बिजनेसमैन की जिंदगी के अलग पहलू हो सकते हैं तो एक कलाकार के अलग पहलू। किसी के पास सिर्फ एक ही पहलू हो सकता है तो किसी के पास कई पहलू। लेकिन एक नेता की जिंदगी के दो पहलू बहुत खास होते हैं। एक तो यह कि वह सार्वजानिक जीवन में क्या कर रहा है और दूसरा यह कि उसकी निजी जिंदगी कैसी है!
जब एक इंसान अपनी जिंदगी को सामाजिक न्याय को स्थापित करने के लिए आंदोलन की राह पकड़कर राजनीति की मंजिल तय करता है तो उसकी निजी जिंदगी कहीं गुम सी हो जाती है और उसकी राजनीतिक जिंदगी उसके व्यक्तित्व पर हावी हो जाती है। आगे चलकर यही राजनीतिक जिंदगी उसकी पहचान बनती है।
हिंद युग्म प्रकाशन से छपी इस किताब की प्रस्तावना लिखने वाले अमेरिका के अटलांटा में स्थित सीएनएन के वरिष्ठ पत्रकार रहे मरहूम जिम सदरलैंड कहते हैं– ‘मेरे हिसाब से यही सही वक्त है जब सोशलिस्ट (एक समाजवादी) जैसी किताब लिखी जा रही है। कैसे देश के पिछड़े इलाके में भाषा पढ़ाने वाला एक मास्टर ऐसी ताकत बन जाता है और जो कामगारों की बेहतरी, उनकी हालत सुधारने और उनकी सुरक्षा के लिए कदम उठाकर दुनिया के सामने अपने राज्य को एक उदाहरण के तौर पर पेश करता है। हम उनके उदाहरण से सबक ले सकते हैं और इसे दुनिया के तमाम देशों में पिछड़े समाज की बेहतरी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।’
जिम सदरलैंड की यह बात निश्चित रूप से एक राजनीतिक सीख की तरह है। क्योंकि आज का राजनीतिक माहौल जिस तरह से कुत्सित हो गया है और सामाजिक समरसता का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया है, देश में सांप्रदायिकता अपने चरम पर है, ऐसे में नेताजी की राजनीतिक जिंदगी इस समाज का मार्गदर्शन कर सकती है। आज केंद्र में विपक्ष जैसी किसी ताकत की कल्पना करना भी नामुमकिन नजर आ रहा है। लेकिन नेताजी कहते थे कि विपक्ष ही लोकतंत्र का दिल होता है। यानी उनका मानना था कि बिना विपक्ष के लोकतंत्र एक तानाशाही प्रवृत्ति अख्तियार कर लेता है जो आम जनता के लिए बहुत घातक सिद्ध होता है।
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जो नेताजी हमेशा हिंदी की वकालत करते रहे (नेताजी अंग्रेजी के खिलाफ नहीं थे) उनकी जीवनी जब फ्रैंक हुजूर ने लिखी तो अमेरिकी बड़ी अंग्रेजी मीडिया कंपनी सीएनएन के वरिष्ठ पत्रकार जिम सदरलैंड ने इस किताब की प्रस्तावना लिखी। इससे यह बात भी साबित होती है कि नेताजी की शख्सियत दुनिया में सराही जा रही है और लोग उनकी राजनीति को भारत के लिए बेहद जरूरी मान रहे हैं। तभी तो ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में रहने वाले विवेक ग्लेनडेनिंग उमराव मानते हैं कि– ‘जनता और मीडिया द्वारा जिस तरह रूस में लेनिन का मान-सम्मान किया जाता है, ठीक उसी तरह मुलायम सिंह को भी भारत में जनता और मीडिया द्वारा मान-सम्मान दिया जाना चाहिए था।’ जाहिर है, समाजवाद की राह पर चलकर ही जातिवादी क्रूरता को खत्म किया जा सकता है क्योंकि भारतीय समाज में जाति-व्यवस्था के कारण ही योग्यता और प्रतिभा को अब तक अच्छी तरह से सहेजा ही नहीं जा सका है।
क्या ही अफसोस की बात है कि नेताजी के इस दुनिया से चले जाने के बाद उनकी राजनीतिक जीवनी हमारे बीच आई है। यह तो समय का चक्र है। समय का चक्र तो नेताजी का भी था जो गांव से शुरू होकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से होते हुए देश का रक्षा मंत्री बनने तक पहुंचा। समाजवादी आंदोलन के प्रखर योद्धा ‘धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव’ का इस दुनिया से जाना देशभर के समाजवादियों के लिए एक बड़े दुख का दिन था जब 10 अक्टूबर 2022 की सुबह 82 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हुआ। हम सब उन्हें नेताजी के नाम से भी जानते हैं।
बिहार के बक्सर में जन्मे फ्रैंक हुजूर मूलतः अंग्रेजी के लेखक और जर्नलिस्ट हैं। राँची के सेंट जेवियर्स, और दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से शिक्षा प्राप्त फ्रैंक अपनी इंगलिश पोएट्री और ड्रामा (हिटलर इन लव विथ मैडोना) से चर्चित हुए। इसके बाद इन्होंने नाटक ‘ब्लड इज बर्निंग’ और ‘स्टाइल है लालू की जिंदगी’ लिखा। मात्र बीस वर्ष की उम्र में अंग्रेजी मैगजीन ‘यूटोपिया’ के संपादक बनने वाले फ्रैंक ने प्रख्यात क्रिकेटर और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की राजनीतिक जीवनी ‘इमरान वर्सेस इमरान: दी अनटोल्ड स्टोरी’ भी लिखी है। मुलायम सिंह की राजनीतिक जीवनी ‘सोशलिस्ट: मुलायम सिंह यादव’ लिखने के बाद फ्रैंक अपने पहले नॉवेल पर काम कर रहे हैं। फ्रैंक का यह शानदार लेखकीय सफर यह साबित करता है कि उनकी किताबें कितनी गहराई लिए होंगी। ऐसे में देशभर के सुधी पाठकों के लिए ‘सोशलिस्ट: मुलायम सिंह यादव’ किताब को पढ़ा जाना बेहद जरूरी हो जाता है।
किसी भी व्यक्ति की जीवनी का आधार उसकी जड़ों में ही निहित होता है। इसलिए राजनीतिक जीवनी को जानने-समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि नेताजी की जड़ें कहां से लगती हैं और किस तरह वह राजनीति में आकर एक बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बने।
नेताजी के समकक्षों ने इस किताब में दर्ज अपने साक्षात्कारों में यह बताया है कि समाजवाद की सशक्त आवाज और देशहित के लिए शानदार नीतियां बनाने वाले नेताजी की जिंदगी राजनीतिक आदर्शों की एक बहुत बड़ी मीनार है जहां से सांप्रदायिक सौहार्द से ओतप्रोत एक खूबसूरत हिंदुस्तान दिखाई देता है।
इस किताब में यह पड़ताल दर्ज है कि समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव किस तरह से लगभग पांच दशक से ज्यादा समय तक देश की राजनीति में सक्रिय रहे। उनकी पहचान एक राष्ट्रीय नेता की भले रही, लेकिन उन्होंने कभी अपनी जमीन और अपने राज्य उत्तर प्रदेश को नहीं छोड़ा और हमेशा उसे उत्तम प्रदेश बनाने के बारे में सोचते रहे, तत्पर रहे। भले ही वह सत्ता में रहे हों या न रहे हों। इस सियासी मुहिम में वो एक हद तक कामयाब भी हुए लेकिन राजनीतिक जिंदगी में कुछ खास करने के मौके भी कुछ साल के लिए ही आते हैं।
इस राजनीतिक जीवनी को पढ़ते हुए नेताजी के विचारों और उनके चिंतन को समझा जा सकता है। धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को मजबूत करने की उनकी सोच इतनी गहरी थी कि इसके लिए वो राज्य के किसी भी कोने में अपने कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंच जाते थे और उनको संबल प्रदान करते थे।
कुल 39 अध्यायों वाली इस किताब में कुछ अध्याय तो इतने प्रासंगिक हैं कि उन्हें देश-दुनिया के विश्वविद्यालयों के राजनीतिक विभागों में पढ़ाए जाने की जरूरत है। उन अध्यायों में– नन्हा समाजवादी, शहनाई की गूँज, सियासत भी रोमांस भी, सियासत और जंगबाजी, समाजवाद की राह, किसानों का मसीहा, क्रांति रथ का घूमता पहिया, गुलाब क्रांति, मंडल और कमंडल की आग, मंदिर या मस्जिद, जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है, धर्मनिरपेक्षता का रक्षा कवच, कार्यकर्ताओं के अभिभावक, जमीन से निकला मजबूत समाजवादी, और मुलायम बनाम लेनिन आदि प्रमुख हैं।
लोहिया की राजनीति के ब्राइट स्कॉलर-स्टूडेंट प्रोफेसर आनंद कुमार जेएनयू से समाजशास्त्र के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं और वह आम आदमी पार्टी के संस्थापकों में से एक हैं। प्रोफेसर आनंद कुमार बताते हैं– ‘अगर देश भर में किसी ने लोहिया को जिंदा रखा है तो वो मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में जिंदा रखा है। मुलायम के कई अच्छे कामों में यह सबसे बड़ा कामयाब काम है। बहुत हिम्मत की बात थी। अपनी मजबूरियों के बीच में नेताजी ने ऐसा कर दिखाया। मुलायम को राम मनोहर लोहिया का राजनीतिक वारिस भी कह सकते हैं क्योंकि यदि किसी ने लोहिया के समाजवाद को सत्ता तक पहुँचाया है तो वो मुलायम सिंह ही हैं।’
मुलायम की राजनीतिक शख्सियत के अनछुए पहलुओं को सामने लाने के लिए लेखक फ्रैंक हुजूर ने एक से बढ़कर एक प्रतिष्ठित और सम्मानित शिक्षाविदों, सांसदों एवं विधायकों के साथ नेताजी के साथ काम कर चुके उनके कार्यकर्ताओं के दिल की बातों को जानने की जो कोशिश इस किताब में की है, वह बहुत ही बड़े कौशल का काम है।