दिल्ली विधानसभा चुनाव में इन 10 गलतियों का खामियाजा भुगतेगी BJP

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नई दिल्ली. दिल्ली में शनिवार को हुए मतदान के बाद अधिकतर एग्जिट पोल आम आदमी पार्टी की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं। ये एग्जिट पोल भाजपा को 30 सीट भी देने को तैयार नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर एग्जिट पोल के परिणाम अनुमान के मुताबिक आते हैं, तो ये भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा और इस हार का अन्य राज्यों पर भी असर पड़ेगा। तो आखिर वो क्या वजहें हैं, जो पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद भी बीजेपी को जीत नहीं दिला सकते। आइए, जानते हैं इन कारणों के बारे में।
गलती नंबर 1: लोकसभा चुनाव में जीत के बाद तुरंत चुनाव न करवाना
दिल्ली में अगर बीजेपी हारी तो उसकी सबसे बड़ी गलती होगी लोकसभा में पार्टी की जीत के बाद दिल्ली चुनाव न करवाना। लोकसभा चुनाव में पार्टी दिल्ली की सभी 7 सीटें जीती थी और देश भर के साथ दिल्ली में भी मोदी लहर थी। मई 2014 में भारी बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने वाली बीजेपी को जून 2014 में ही दिल्ली चुनाव करा लेना चाहिए था। ऐसा करने से दिल्ली में पार्टी के लिए कोई चुनौती नहीं होती। इसके साथ ही दिल्ली में उन्हें चुनौती देने वाले केजरीवाल भी लोकसभा चुनाव में वाराणसी से बुरी तरह चुनाव हारे थे। लेकिन बीजेपी ने दिल्ली चुनाव को ज्यादा लंबा खींच कर अपने सियासी दुश्मन अरविंद केजरीवाल को मजबूत होने का मौका दिया।
गलती नंबर 2. मीडिया का बेहतर इस्तेमाल करने में विफल
देश के दूसरे हिस्सों से अलग दिल्ली में देश और दुनिया के मीडिया का जमावड़ा रहता है। यही वजह है कि अगर पार्टी यहां हारी तो इसका मैसेज देश के दूसरे हिस्सों के अलावा दूसरे देशों में भी जाएगा। दिल्ली चुनाव को लेकर मीडिया में आ रहे लगभग आधे से ज्यादा एग्जिट पोल आम आदमी पार्टी को बहुमत मिलने का अनुमान लगा रहे हैं। लोकसभा चुनावों में जिस तरह मीडिया ने बीजेपी और मोदी के लिए अपनी भूमिका निभाई थी, इस बार केजरीवाल यह बात अच्छे से समझ चुके थे कि दिल्ली में दुनियाभर के मीडिया का उपयोग कैसे करना है। इस मामले में आम आदमी पार्टी बीजेपी पर भारी दिखाई दी।
गलती नंबर 3. मिडल क्लास वोटर्स को लेकर कोई ठोस रणनीति नहीं
दिल्ली में वोटर्स का एक बड़ा तबका मिडल क्लास से आता है। लेकिन लोकसभा चुनावों की तरह मोदी और शाह की जोड़ी दिल्ली के मिडल क्लास वोटर्स को लेकर कोई ठोस रणनीति नहीं बना सकी। लोकसभा चुनावों में भाषण के दौरान मोदी अपने इस ‘नियो मिडल क्लास’ पर फोकस करते रहे थे, लेकिन में इसे लेकर पार्टी की कोई ठोस नीति सामने नहीं आ सकी और न ही इस क्लास को अप्रोच किया गया, जबकि मोदी का यह नियो मिडल क्लास दिल्ली का सबसे बड़ा वोटर वर्ग है। दूसरे, देश के दूसरे हिस्सों से रोजगार की तलाश में दिल्ली में आए लोग जो ड्राइवर, रसोइया, सफाई कर्मचारी, हॉकर्स का काम करते हैं, इन लोगों को भी भाजपा अपने पक्ष में नहीं कर पाई। जबकि यह काम अरविंद केजरीवाल ने बखूबी किया। आम आदमी पार्टी जहां काफी पहले से इस वर्ग के साथ जुड़ गई थी, मोदी ने चुनाव के आखिरी दो हफ्ते में ही इनसे रू-ब-रू होने की कोशिश की। मतदाताओं के एक बड़े वर्ग से यह दूरी पार्टी पार्टी के पक्ष में नहीं रही।
चुनावों में उतरने से पहले अपने साथ ही अपने विरोधी की ताकत और कमजोरी को आंक लेना पार्टी की पुरानी रणनीति है। इस बार बीजेपी ने अपने विरोधी को कम करके आंका। केजरीवाल के 49 दिन का शासन जिसे पार्टी केजरीवाल के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी मानकर चल रही थी, वह उसी के खिलाफ गई। दूसरा, पार्टी ने दिल्ली के स्थानीय नेताओं की अनदेखी की, जो उसे यहां भारी पड़ती दिखाई दे रही है। इससे दिल्ली भाजपा के नेताओं में यह संदेश गया कि पार्टी के लिए लोकल लीडरशिप इम्पॉर्टेंट नहीं है। पार्टी महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में बीजेपी लोकल लीडरशिप की अनदेखी कर चुनाव में जीत दर्ज कर चुकी है। दिल्ली में भी पार्टी ने ऐसा ही किया और किरण बेदी को लाई, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। हालांकि, विशेषज्ञों की नजर में किरण बेदी की बीजेपी में एंट्री गलत वक्त पर सही फैसले जैसी थी। लेकिन देरी से फैसला लेने की वजह से न तो बेदी पार्टी के लिए कुछ खास कर पाईं और न ही पार्टी नेताओं के साथ समन्वय बना पाईं। यही वजह रही कि जनवरी महीने तक दिल्ली के ओपिनियन पोल में आगे चल रही बीजेपी मतदान का दिन आते-आते काफी पीछे हो गई।
गलती नंबर 5: हालात को समझने में हुई गलती
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर चीफ गेस्ट बुलाना भी बीजेपी को दिल्ली चुनाव में कोई बढ़त नहीं दिला पाया। चुनावों में उसका कोई असर नजर ही नहीं आया। इतना जरूर माना जा रहा है कि इसने उलटा बीजेपी के लिए नकारात्मक प्रभाव पैदा किया। महज दो-तीन डिप्लोमैटिक मीटिंग्स के बाद मोदी का ओबामा को ‘बराक’ कह कर संबोधित करना जानकारों को डिप्लोमेसी के लिहाज से नकारात्मक ही लगा। दूसरी गलती इस मुलाकात के प्रधानमंत्री मोदी का पहना गया 10 लाख के सूट को माना गया, जिस पर एम्ब्रॉयडरी से उनका नाम लिखा हुआ था। दिल्ली चुनाव में केजरीवाल ने इसे मुद्दा बनाया और दिल्ली का यह ‘मफलरमैन’ वेल ड्रेस्ड रहने और अपनी ड्रेसिंग सेंस का खास ख्याल रखने वाले पीएम के सीधे सामने आ गया। पीएम के सूट का मुद्दा बनना ऐसा रहा जैसे मोदी ने सेल्फ गोल कर लिया हो।
गलती नंबर 6: कांग्रेस के वोट बैंक को अपनी तरफ मोड़ने में फेल
दिल्ली चुनाव में बीजेपी कांग्रेस को खत्म मानने की गलती तो कर ही रही थी, लेकिन वह इसे लेकर कोई रणनीति नहीं बना पाई कि कांग्रेस से छिटका हुआ वोट बैंक कहां जाएगा। कांग्रेस का अब तक लगभग एक-तिहाई वोट बैंक पर कब्जा रहा है। ऐसे में, कांग्रेस से जुड़ा हुआ माइनॉरिटी और दलित वोट बैंक कहीं तो जाएगा। इस वोट बैंक को ‘आप’ की तरफ मोड़ने में बीजेपी के ही कई नेताओं और सांसदों ने बड़ी भूमिका निभाई, जिसने दिल्ली में इस वोट बैंक को बीजेपी में जाने से रोक दिया। इसके बदले में उसे ‘आम आदमी’ टाइटल वाली पार्टी पर ज्यादा भरोसा नजर आया।

चुनाव के अंतिम क्षणों में अमित शाह अपनी उस तकनीक पर ज्यादा भरोसा जताते थे जिसमें बूथ लेवल मैनेजमेंट मुख्य होता था। इस सिस्टम में ग्राउंड लेवल पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का काम मतदाताओं से डोर-टू-डोर मिल कर कैंपेन चलाना होता था। मोदी का संदेश ‘अच्छे दिन’ लोगों की जुबान पर हुआ करता था। यही 2014 में मोदी और बीजेपी की बड़ी जीत की वजह बना। लेकिन इस बार केजरीवाल आम आदमी से जुड़े हर मुद्दे को बीजेपी से पहले पकड़ चुके थे। इसके बाद कही गई नई बात ने केजरीवाल ने हाथों हाथ लिया और कहा कि केंद्र सरकार यह धमकी दे रही है कि यदि राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं बनेगी, तो वह विकास में राज्य का सहयोग नहीं करेगी। गौरतलब है कि पीएम मोदी ने अपनी एक रैली में राज्य के विकास के लिए केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार बनाने की अपील की थी।
गलती नंबर 8: पेट्रोल-डीजल के कम होते दामों का श्रेय लेना
चुनाव के दौरान बीजेपी नेताओं ने केंद्र सरकार के विकास के जो झूठे आंकड़े पेश किए, उन पर भी जनता को विश्वास नहीं हुआ। पार्टी की तरफ से पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने, गैस के दाम कम होने जैसे उदारहण दिए। पीएम मोदी ने एक सभा में कहा कि अगर ‘मेरे जैसे नसीब वाले के आने से तेल के दाम कम हो रहे हैं, तो फिर बदनसीब को लाने की क्या जरूरत है।’ दिल्ली में ज्यादातर पढ़े- लिखे और समझदार लोग इस बात को समझते हैं कि तेल के दाम क्यों गिर रहे हैं। इसका श्रेय लेना पार्टी की प्रचार पॉलिसी के लिए भारी पड़ गया।
गलती नंबर 9: समय का फायदा उठाने में विफल
लोकसभा चुनावों में मोदी मैजिक के सहारे बड़ी जीत हासिल करने वाली बीजेपी की दिल्ली इकाई के नेता केंद्र में सरकार बनने से अब तक के 9 महीने में लोगों को सरकार के कामकाज के बारे में बताने में नाकाम रहे। वे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मिलकर इलेक्शन तो टलवाते रहे, लेकिन इस समय का फायदा नहीं उठा पाए। बीजेपी नेता लगातार चुनाव को आगे बढ़ाने की बात करते रहे। हालांकि, अदालत की सक्रियता से चुनाव की तारीख नजदीक आ ही गई। दिल्ली बीजेपी के नेता मैदानी लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे। वे मोदी मैजिक के भरोसे ही दिखाई दिए। नौ महीने के इस समय में जहां उन्हें केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को काउंटर करना चाहिए था, वे जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त ही नजर आते रहे और बीजेपी में लड़ाई इस बात पर शुरू हो चुकी थी कि दिल्ली का सीएम कौन बनेगा। जबकि उन्हें पार्टी के प्रचार की कमान संभालनी चाहिए थी, जैसा कि उनके विरोधी कर रहे थे। ऐसा होने पर हो सकता है 10 फरवरी को आने वाले नतीजे कुछ और ही होते।
गलती नंबर 10: केजरीवाल को नजरअंदाज करना
हालांकि, यह गलती चुनाव नतीजे किसके पक्ष में रहते हैं, इस पर ज्यादा निर्भर करेगी। अगर केजरीवाल जीते तो वे बीजेपी के खिलाफ उसे दिल्ली में साइड लाइन करने के लिए नई तरह की जंग छेड़ देंगे। केजरीवाल बीजेपी शासित तीनों एमसीडी (म्युनिसिपल कॉरपोरेशन) को लेकर केंद्र और संघ को निशाने पर लेंगे। अगर केजरीवाल और उनकी पार्टी चुनाव हार जाती है तो वे दिल्ली सरकार के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन छेडते रहेंगे। बीजेपी की यह जीत या हार जो भी 10 फरवरी को होने वाली है, वह उसके लिए नई तरह की चुनौतियां लेकर आ रही है। केजरीवाल जीतें या हारें, बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाते रहेंगे। पार्टी के लिए अब उन्हें नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। अगर बीजेपी चुनाव जीत भी जाती है, तो ये ऐसी गलतियां होंगी, जिन्हें वह भूलना या दोहराना नहीं चाहेगी। ये गलतियां मोदी और शाह की जोड़ी की दिल्ली में की गई बड़ी गलतियां ही मानी जाएंगी।