अनोखी दीपावली, घर-घर जाकर करता है गोवारी समाज दिपावली मे गोवर्धन पूजन

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गोंदिया,15 नवंबर-महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश एंव छत्तीसगड राज्य मे गोवारी समाज की और से हर साल दीपावली त्योहार धनतेरस से नया उमंग निर्माण कर पुरानी परंपंरा के अनुसार उत्सव को मनाया जाता है। जिले के हर गाव मे गोंडगोवारी समाज के द्वारा तीसरे दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना 14 नवंबर की रात गोवारी समाज के द्वारा भगवान खिलिया मुठिया ( भगवान श्रीकृष्ण) के पास ढार ले जगाकर यानी पूजा पाठ कर घर-घर ढार पूजा करवा ते है। जिसमें हर घर से आरती निकालकर ढार की पूजा पाठ कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह क्रम पूरी रात भर के बाद सुबह 15 नवम्बर तक जारी रहता है,उसके बाद गायगोधन के बाद फिर से श्याम को हर घर जाकर गोबर से बने गोवर्धन की पुजा अर्चना की जाती है। इस मौके पर,पुनेश्वर राऊत,गोवर्धन बोपचे,अनिल बोपचे, सुनिल सहारे, गोकुल बोपचे,सुशील राऊत,नंदाराम सहारे,डाॅ.श्यामकांत नेवारे, सुजल, सुधीर राऊत, संगीत राऊत, राहुल,संजय राऊत सहित समाज के लोग मौजूद रहे। बता दें कि आज रात घर-घर आंगन में गोवर्धन की पूजा अर्चना संपन्न करवाई जाएगी।

पांच पौधों के पत्तों से बनती है ढार

पुनेश्वर राऊत ने बताया कि भगवान खिलिया मुठिया को पहली बार दशहरा पर्व की रात पूजा पाठ की जाती है। उसके बाद दूसरी बार लक्ष्मी पूजन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना होती है। इसी रात को गोवारी समाज के लोग अपने इष्ट भगवान खिलिया मुठिया के पास दीपावाली के पौधे, पलास के पत्ते, सोना पत्ती और रानी तुलसी से बनी ढार, सिंदूर, कुकू, नारियल व अगरबत्ती से पूजा पाठ करते हैं। जिसके बाद घर-घर ढार बाजे गाजे के साथ लेकर जाते हैं।

गोवर्धन पूजन की कहानी

द्वापर युग में गोकुलवासी भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर गोवर्धन का पूजन आरंभ आरंभ किया था। उस समय देव लोक के इंद्र देव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर भारी बारिश कर तबाही मचाना शुरू कर दिया था। तब बाल ग्वालों व यादवों की रक्षा करने और इंद्र देव का घमंड तोड़ने भगवान श्रीकृष्ण ने एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत सात दिन तक उठाए रखा। यह गोवर्धन पर्वत अंजनी पुत्र हनुमान ने त्रेता युग में समुद्र पर सेतु बनाने पर्वत ले जा रहे थे, लेकिन सेतु पूरा होने के कारण उन्होंने गोवर्धन पर्वत को गोकुल में स्थित कर दिया गया था। इसका उल्लेख श्रीमद् भागवत गीता में है।