जयशंकर ने संभाला विदेश सचिव का पद गैरहाजिर रहकर सुजाता ने जताई नाराजगी

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नई दिल्ली। बुधवार को देर रात विदेश सचिव बनाए गए एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को कार्यभार संभाल लिया। इस दौरान कार्यकाल में की गई कटौती से नाराज निवर्तमान विदेश सचिव ने अनुपस्थित रह कर अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया।
पद संभालने के बाद विदेश सचिव ने सरकार की प्राथमिकताओं को अपनी प्राथमिकता बताया और अपनी नई भूमिका को सम्मान के साथ बड़ी जिम्मेदारी करार दिया। उल्लेखनीय है कि कैबिनेट की नियुक्ति मामलों की कमेटी ने बुधवार देर रात सुजाता के कार्यकाल में कटौती कर अचानक अमेरिका में भारत के राजदूत की जिम्मेदारी संभाल रहे जयशंकर को नया विदेश सचिव नियुक्त कर दिया। वर्ष 2013 में विदेश सचिव बनाई गई सुजाता के कार्यकाल के करीब 8 महीने बाकी थे। बतौर राजदूत 31 जनवरी को रिटायर हो रहे जयशंकर को विदेश सचिव बनाए जाने के बाद उनका कार्यकाल दो साल बढ़ जाएगा। वर्ष 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी जयशंकर वर्ष 2013 में भी सुजाता के साथ इस पद की रेस में शामिल थे। बृहस्पतिवार को जब जयशंकर अपनी नई जिम्मेदारी संभाल रहे थे तब निवर्तमान विदेश सचिव इस दौरान वहां उपस्थित नहीं थी।
हालांकि प्रभार देने के लिए निवर्तमान विदेश सचिव की उस दौरान वहां उपस्थिति कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। मगर शिष्टाचार के तहत निवर्तमान विदेश सचिव ऐसे मौकों पर उपस्थित रहते आए हैं। मंत्रालय के सूत्रों केमुताबिक हालांकि सरकार ने उन्हें सम्मानजनक पद देने का भरोसा दिया है, मगर सुजाता सरकार के इस फैसले से बेहद नाराज हैं। इस दौरान जयशंकर ने भी कार्यभार संभालने के बाद संक्षिप्त टिप्प्णी ही की। कूटनीतिक मोर्चे पर कई अहम जिम्मेदारी निभा चुके जयशंकर शुरू से ही इस पद के लिए प्रधानमंत्री मोदी की पहली पसंद थे। भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा कराने में उनकी भूमिका बेहद अहम थी।
जयशंकर से चीन, रूस और अमेरिका को एक साथ साधेंगे प्रधानमंत्री
•नई दिल्ली। एस जयशंकर वर्ष 2013 में भी विदेश सचिव के पद की रेस में सबसे आगे थे। तब वह तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की पहली पसंद थे। लंबी रस्साकशी के बाद मनमोहन को कांग्रेस नेतृत्व की पसंद सुजाता सिंह के नाम पर सहमति देनी पड़ी थी। लेकिन पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी जयशंकर के चीन, श्रीलंका, रूस और अमेरिका में गहरे संपर्कों का लाभ उठाना चाहते थे।