ये है भारत का आखिरी वीरान छोर, यहां से दिखता है श्रीलंका

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वृत्तसंस्था
नई दिल्ली. धनुषकोडी गांव भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है जो पाक जलसंधि में बालू के टीले पर सिर्फ 50 गज की लंबाई में विश्‍व के लघुतम स्‍थानों में से एक है। साधारण शब्दों में कहें, तो यह भारत के छोर पर ऐसी वीरान जगह है जहां से श्रीलंका दिखाई पड़ता है। हालांकि यह जगह अब भुतहे शहरों की फेहरिस्त में शुमार है, क्योंकि इस इलाके में अंधेरा होने के बाद घूमना मना है। यहां ग्रुप में दिन के उजाले में जाएं और शाम होने से पहले रामेश्‍वरम लौट आएं क्‍योंकि पूरा 15 किमी का रास्‍ता सुनसान, डरावना और रहस्‍यमय है।

पर्यटन इस क्षेत्र में उभर रहा है। भारी संख्या में पर्यटक इस भुतहे शहर को देखने अक्सर आते हैं। भारतीय नौसेना ने भी यहां चौकी की स्‍थापना की है। धनुषकोडी में आप भारतीय महासागर के गहरे और उथले पानी को बंगाल की खाड़ी के छिछले और शांत पानी से मिलते हुए देख सकते हैं। क्योंकि समुद यहां छिछला है, तो आप बंगाल की खाड़ी में जा सकते हैं और रंगीन मूंगों, मछलियों, समुद्री शैवाल, स्टार मछलियों और समुद्र ककड़ी आदि को देख सकते हैं।

चक्रवात ने बर्बाद कर दिया धनुषकोडी-
बीते समय की रंगीन जिंदगी यहां अभी भी खंडहरों में दिखाई पड़ती है। 1964 के चक्रवात से पहले, धनुषकोडी एक उभरता हुआ पर्यटन और तीर्थ स्‍थल था। चूंकि सीलोन (अब श्रीलंका) केवल 18 मील दूर है, धनुषकोडी और सिलोन के थलइमन्‍नार के बीच यात्रियों और सामान को समुद्र के पार ढोने के लिए कई साप्‍ताहिक फेरी सेवाएं थीं। इन तीर्थयात्रियों और यात्रियों की जरूरतों के मद्देनजर वहां होटल, कपड़ों की दुकानें और धर्मशालाएं भी थी। धनुषकोडी के लिए रेल लाइन, जो तब रामेश्‍वरम नहीं जाती थी और जो 1964 के चक्रवात में नष्‍ट हो गई, सीधे मंडपम से धनुषकोडी जाती थी। उन दिनों धनुषकोडी में रेलवे स्‍टेशन, एक छोटा रेलवे अस्‍पताल, एक पोस्‍ट ऑफिस और कुछ सरकारी विभाग जैसे मछली पालन आदि थे। यह इस द्वीप पर जनवरी 1897 में तब तक था, जब स्‍वामी विवेकानंद सितंबर 1893 में यूएसए में आयोजित धर्म संसद में भाग लने के लेकर पश्‍चिम की विजय यात्रा के बाद अपने कदम कोलंबो से आकर इस भारतीय भूमि पर रखे।

पौराणिक मान्यता-
हिदूं धर्मग्रथों के अनुसार रावण के भाई और राम के सहयोगी विभीषण के अनुरोध पर राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया और इस प्रकार इसका नाम धनुषकोडी पड़ा, धनुष यानि धनुष और कोडी यानि सिरा। यह भी कहा जाता है कि राम ने अपने प्रसिद्ध धनुष के एक छोर से सेतु के लिए इस स्थान को चिह्नित किया। सामान्‍यत: दो समुद्रों के संगम पर पवित्र सेतु में स्नान कर तीर्थयात्री रामेश्‍वरम के लिए अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं। एक रेखा में पाई जाने वाली चट्टानों और टापूओं की श्रृंखला प्राचीन सेतु के ध्‍वंसावशेष के रूप में दिखाई देती हैं और जिसे राम सेतु के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि काशी की तीर्थयात्रा महोदधि (बंगाल की खाड़ी) और रत्‍नाकर (हिंद महासागर) के संगम पर धनुषकोडी में पवित्र स्‍थान के साथ रामेश्‍वरम में पूजा के साथ ही पूर्ण होगी। सेतु संस्कृत का पुल या सेतु को इंगित करने वाला शब्द है। राम द्वारा लंका पहुंचने के लिए महासागर पर बनाए गए पुल के रूप में यह अब विशेष महत्व अर्जित कर चुका है।
अगली स्लाइड में देखिए भूतहे धनुषकोडी की तस्वीरें