किरन बेदी की सभा में भीड़ नहीं आने से बीजेपी चिंतित

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नई दिल्ली -बीजेपी की सीएम कैंडिडेट किरन बेदी की सभाओं में उम्मीद के अनुरूप भीड़ न आने से चिंतित बीजेपी अब फिर से नरेंद्र मोदी पर फोकस करने की कोशिश में है। पार्टी इस बात पर भी विचार कर रही है कि अब मोदी की सभाएं बढ़ाई जाएं, ताकि दिल्ली में पार्टी के पक्ष में माहौल को गरमाया जा सके। पार्टी यह भी कोशिश कर रही है कि बीएसपी बढ़-चढ़कर चुनाव प्रचार करे, ताकि आम आदमी पार्टी की ओर खिसकते जा रहे दलित वोटरों को रोका जा सके।
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक पार्टी को मोदी की सभाएं बढ़ाने पर इसलिए विचार करना पड़ रहा है, क्योंकि पार्टी की अपेक्षाओं के मुताबिक बेदी की बदौलत उसे बहुत फायदा होता नजर नहीं आ रहा। पार्टी के एक सीनियर नेता के मुताबिक किरन बेदी के आने के बाद व्यापारी वोटरों के नुकसान की आशंका जरूर बढ़ गई है। दरअसल, दिल्ली में वैश्य वोट हमेशा से बीजेपी के पक्ष में ही जाता रहा है। लेकिन इस बार किरन बेदी के आने के बाद व्यापारी वर्ग में इस बात को लेकर हलचल मच गई है कि अगर बेदी ही मुख्यमंत्री बन गईं तो उनके हितों की रक्षा नहीं होगी, बल्कि उन्हें इसका नुकसान ही होगा।
पार्टी के एक सीनियर लीडर के मुताबिक दिल्ली में इस वक्त बीजेपी की आशंका मुस्लिम, सिख और दलित वोटरों को लेकर है। पहले इसमें से ज्यादा हिस्सा कांग्रेस की झोली में जाता रहा है। लेकिन इस बार बीजेपी इसे लेकर चिंतित है। दिल्ली में इन तीनों वर्गों का कुल वोट लगभग 40 से 45 फीसदी है। बेदी के सीएम इन वेटिंग होने के बाद यह जरूर है कि महिलाओं के बीच बीजेपी के लिए सेंटीमेंट बढ़िया हुआ है, लेकिन उधर वैश्य वर्ग के वोटरों का बीजेपी से छिटकने का खतरा पैदा हो गया है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि अब पार्टी विचार कर रही है कि अगर बीएसपी का आधार कुछ बढ़ता है, तो उसका फायदा आखिरकार बीजेपी को ही होगा। इसकी वजह है कि इस हालत में दलित वोट अगर बंटता है तो उससे बीजेपी को ही फायदा होगा। हालांकि कृष्णा तीरथ को पार्टी में लाकर बीजेपी का कैंडिडेट बनाया गया, लेकिन उससे भी दलित वोटरों में बीजेपी की पैठ उतनी मजबूत नहीं हुई, जितनी उम्मीद थी।
अब पार्टी ने यह रणनीति भी बनाई है कि राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी सरीखे नेताओं की हर विधानसभा में कम से कम तीन चुनावी सभाएं की जाएं। इसी तरह फिलहाल बीजेपी मोदी की चार रैलियां करने की तैयारी में थी, लेकिन अब पार्टी नेता विचार कर रहे हैं कि मोदी की एक या दो और रैलियां कराई जाएं। हालांकि इसके लिए अभी अमित शाह और खुद मोदी से भी इसकी मंजूरी लेनी होगी। वैसे पार्टी को ज्यादातर उम्मीदवारों से यही डिमांड मिल रही है कि उनके क्षेत्र में मोदी की रैली हो। महत्वपूर्ण है कि पहले पार्टी मोटी की कम से कम सात रैलियां कराना चाहती थी, लेकिन रामलीला मैदान की रैली के बाद चार रैलियों की रणनीति बनाई गई।